निहायती कुकर्मों से सुशोभित इंसान

निहायती कुकर्मों से सुशोभित ये इंसान...
अपने रक्षकों को स्वयं पीटते ये इंसान...

कभी डॉक्टर कभी 
पुलिसकर्मी बनते
इनके शिकार...
किस कुल के तुम पैदावार, ए बेशर्म इंसान...
निहायती कुकर्मों से सुशोभित ये इंसान...

पिता की उम्र वाले पर 
हाथ अपना उठाते हैं
अपने रक्षकों को पीटने पर जरा भी नहीं घबराते हैं...
इसलिए तो इंसानी जत पर ये कलंक कहलाते हैं...

क्यों करते हैं ये ऐसा
समझ नहीं आता है
अब खुद को इंसान कहने पर भी शर्म आता है...

निहायती कुकर्मों से सुशोभित ये इंसान
इंसानियत के नाम पर कलंक ये इंसान...
अब तो तुझे देख भगवान भी शर्माता होगा
तुझे अपनी रचना कहने पर वो भी हिचकिचाता होगा...



क्यों करते हैं ये ऐसा
समझ नहीं आता है
अब खुद को इंसान कहने पर भी शर्म आता है...

निहायती कुकर्मों से सुशोभित ये इंसान
इंसानियत के नाम पर कलंक ये इंसान...
अब तो तुझे देख भगवान भी शर्माता होगा
तुझे अपनी रचना कहने पर वो भी हिचकिचाता होगा...

अरे तू इंसान है 
इस धरती पर
तेरी जाती महान है
इंसानियत के नाते हर जंग जीत न...
क्यों लाता है इंसानियत की जगह धर्म , जाती और ईश्वर अल्लाह की उपासना...
मजहब तेरा एक है
इसलिए तो तू नेक है
बुद्धि क्यों कर ली है भ्रष्ट
अरे आंख खोल देख
ये तेरे रक्षक है 
तेरे लिए उठाते हैं इतने कष्ट

निहायती कुकर्मों से सुशोभित ये इंसान...
✍️©RounitSinha

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